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गणगौर त्यौहार कहा मनाया जाता है ?-- गणगौर त्यौहार मुख्यरूप से राजस्थान का लोकप्रिय त्यौहार है यह त्यौहार महिलाएँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए तथा कुवारी लड़किया अच्छे वर पाने के लिए रखती है , इस त्यौहार में भगवान शिव व पार्वती माता की पूजा की जाती है जिसे लोग ईसर-गणगौर के नाम से भी जानते है यह त्यौहार होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है ।इस त्यौहार का मजा दुगुना करने के लिए आप उदयपुर , जयपुर , और जोधपुर जैसी बड़ी सिटी में जानकर इसका मजा ले सकते है ।
गणगौर त्यौहार कब और किस लिए मनाया जाता है ?
गणगौर त्यौहार मुख्यतय महिलाएं मनाती हैं। महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र और वैवाहिक जीवन अच्छा और खुशनुमा रहे उसके लिए और कुँवारी लड़किया अपने अच्छे पति की कामना के लिए गणगौर की पूजा करती हैं। गणगौर का त्यौहार होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता है परन्तु इस त्यौहार की मुख्य पूजा चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को की जाती है। इस वर्ष यह त्यौहार 21 मार्च से 8 अप्रेल तक ये त्योहार बनाया जाएगा।
माता पार्वती ने महिलाओं की सेवा से खुश होकर उनपर सुहागन का प्रेम बरसाया और कहा की जो इस दिन ईसर (शिवजी) गौरी (पार्वती) की पूजा तथा व्रत विधिपर्वक करेगा महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होगी और लड़कियों को उन्हें मनचाहा पति मिलेगा।
यह16 दिन की पूजा होती है और इन 16 दिन तक महिलाएं भगवान शिव और पार्वती का व्रत और पूजा करती हैं।
और कहा जाता है की माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए बहुत कठिन तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होके भगवान शिव ने माता को पत्नी रूप में स्वीकार किया ।
चलिए अब जानते है की गणगौर पूजा कैसे और इसकी पूजा विधि और कथा के बारे में जानते है
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राजस्थान में लड़किया पुरे 16 दिन तक भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते है और उनको खुश करने के लिए और जिन लड़कियों की शादी हो गए हो वो पहला गणगौर अपने मायके में मानती है यही यहाँ की रीत और परम्परा है । महिलाएँ व कुवारी लड़कियाँ तालाब से मिट्टी लेकर आती है और ईसर-गणगौर (शिव-पार्वती) की मूर्तियां आने हाथों से बनाती हैं। और 16 दिन तक पूजा के लिए हर दिन महिलाए व लड़किया तालाब से जल , फूल और हरी घास तालाब से लाती है और लोकगीत गाते है ।
कैसे मनाया जाता है और इसकी पूजा विधि -
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके घर के किसी स्वच्छ स्थान पर लकड़ी के बनी टोकरी में जवारे बोए ।
- बीज के दिन गौरी का सिंजारा लेते है उस दिन सर धोना चाहिए , मेहँदी लगनी , तीज के इन गौरी माता की पूजा करनी और दीवार पे गौरी माता और ईसरजी ,चाँद , सूरज , स्वस्तिक कुमकुम से बनाना चाहिए ।
- जवारों को देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
- गौरीजी का विसर्जन तक रोज सुबह शाम पूजा करना व भोग लगाना ।
- माता के ९ रूपों का ध्यान करना चाहिए ।
- यह व्रत करने वाली महिलाए दिन में एक बार दूध पीकर व्रत करे ।
- माता पार्वती के स्थान के वहा सुहाग की चीजे रखे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि ।
- सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, आदि से पूजा करके माता को चढ़ाए
- फिर माता को भोग लगाए और भोग के बाद माता पार्वती की कथा सूने ।
- कथा के बाद माता पर चढ़ाए सिंदूर सुहागन स्त्रिया अपनी मांग भरे ।
- चैत्र शुक्ल द्वितीया को माता पार्वती को किसी नदी या तालाब पर ले जाकर उन्हें स्नान आदि कराएं।
- चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराए ।
- उन्हें सुंदर व स्वच्छ कपड़ें और गहने आदि पहनाकर पालने में बिठाएं।
- इसी दिन शाम को एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब पर ले जाकर अच्छे से भक्ति पूर्ण उन्हें विदा करें।
- विसर्जन के बाद उसी दिन शाम को उपवास भी खोल सकते है।
इस व्रत पूजा आदि से सारी मनोंकामना पूरी होती है ।
इस बार गणगौर का त्यौहार 21 मार्च से 8 अप्रेल तक मनाया जाएगा। 7 अप्रेल यानी चैत्र मास की शुक्ल द्वितीय को गणगौर सिंजारा है।
गणगौर त्यौहार सत्रह (17) दिन मानाने के पीछे का कारण :-
माना जाता है की गणगौर अपने पूर्व जन्म में सती और ईसरजी महादेव थे ।सती सत्रह दिन की साधना के बाद गौरी के रूप में सरजीवित हुए । इसीलिए यह त्यौहार सत्रह दिन पूजने का क्रम आजतक चलता आरहा है ।
गणगौर की कथा:-
कहा जाता है सारे व्रत और त्यौहार बिना कहानी सुने अधूरे है तो हम भी आपके लिए गणगौर की कथा लेके आए है मान्यता है की -
भगवान शंकर तथा पार्वती जी नारद जी के साथ भ्रमण पर निकले। चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गाँव में पहुँचे । उनके आने की खबर सुनकर गाँव की श्रेष्ठ और कुलीन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं। भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफ़ी समय लग गया लेकिन साधारण परिवार की स्त्रियाँ श्रेष्ठ परिवार की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन के लिए पहुँच गईं। पार्वती जी ने उनके पूजा का भाव देखकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं। बाद में उच्च परिवार की स्त्रियाँ अलग अलग पकवान लेकर गौरी जी और शंकर जी की पूजा करने पहुँचीं। उन्हें देखकर भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा, 'तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?'
पार्वत जी ने कहा , हे प्रभु , आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है।लेकिन मैं इन उच्च परिवार की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहागरस दूँगी। यह सुहागरस जिसके भाग्य में होगा , वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यशालिनी हो जाएगी।'
जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वती जी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर सुहाग रस छिड़क दिया, जिस जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पाया । अखंड सौभाग्य के लिए प्राचीनकाल से ही स्त्रियाँ इस व्रत को करती आ रही हैं।
इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा से पार्वती जी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू के महादेव बनाकर उनका पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के ही पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया। इसके बाद प्रदक्षिणा करके, नदी तट की मिट्टी के माथे पर टीका लगाकर, बालू के दो कणों का प्रसाद पाया और शिव जी के पास वापस लौट आईं।
इस सब पूजन आदि में पार्वती जी को नदी किनारे बहुत देर हो गई थी। अत: शिव जी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा। पार्वती जी ने कहा- 'वहाँ मेरे भाई-भतीजा आदि मायके वाले मिल गए थे, उन्हीं से बातें करने में देरी हो गई।'
परन्तु भगवान समज गए और उन्होंने पूछा- 'तुमने पूजन करके किस चीज़ का भोग लगाया और क्या प्रसाद पाया?'
पार्वती जी ने उत्तर दिया- 'मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। वही खाकर मैं सीधी यहाँ आई हूँ।' यह सुनकर शिव जी भी दूध-भात खाने के लिए नदी-तट की ओर चले । पार्वती जी दुविधा में पड़ गईं। उन्होंने सोचा कि अब सब पता चल जाएगा । उन्होंने मौन-भाव से शिव जी का ध्यान करके प्रार्थना की, 'हे प्रभु! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप ही इस समय मेरी लाज रखिए।'
इस प्रकार प्रार्थना करते हुए पार्वती जी भी शंकर जी के पीछे-पीछे चलने लगीं। वे कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें नदी के तट पर एक सुंदर माया महल दिखाई दिया। जब वे उस महल के भीतर पहुँचे तो वहाँ देखा कि शिव जी के साले और सलहज आदि सपरिवार मौजूद हैं। उन्होंने शंकर-पार्वती का बड़े प्रेम से स्वागत किया।
वे दो दिन तक वहाँ रहे और उनकी खूब मेहमानेंआवाजी हुई । तीसरे दिन जब पार्वती जी ने शंकर जी से चलने के लिए कहा तो वे तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दीं। तब मजबूर होकर शंकर जी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारद जी भी साथ में चले । तीनों चलते-चलते बहुत दूर निकल गए।। तब शिव जी अचानक पार्वती से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।'
पार्वती जी बोलीं -'ठीक है, मैं ले आती हूँ।' किंतु शिव जी ने उन्हें जाने नहीं दिया ।इस के लिए उन्होंने नारद जी को वहाँ भेज दिया। नारद जी ने वहाँ जाकर देखा तो उन्हें महल का नामोनिशान तक न दिखा। वहाँ तो दूर-दूर तक घोर जंगल ही जंगल था।
नारद जी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वह किसी ग़लत स्थान पर तो नहीं आ गए? सहसा बिजली चमकी और नारद जी को माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी। नारद जी ने माला उतार ली और उसे लेकर भयतुर अवस्था में शीघ्र ही शिव जी के पास आए और शिव जी को अपनी विपत्ति का विवरण कह सुनाया।
यह सुनकर शिव जी ने हंसते हुए कहा- 'हे मुनि! आपने जो कुछ दृश्य देखा वह पार्वती की अनोखी माया है। वे अपने पार्थिव पूजन की बात को आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठ बोला था। फिर उस को सत्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से माया महल की रचना की। अत: सचाई दिखने के लिए ही मैंने माला लाने के लिए तुम्हें दुबारा उस स्थान पर भेजा था।'
इस पर पार्वतीजी बोलीं- 'मैं किस योग्य हूँ।'
तब नारद जी ने सिर झुकाकर कहा- 'माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत धर्म का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम का स्मरण करने मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है?
हे माता! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा आर्थक होता है। जहाँ तक इनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना को छिपाने का सवाल है। वह भी उचित ही जान पड़ती है क्योंकि पूजा छिपाकर ही करनी चाहिए। आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।
मेरा यह आशीर्वचन है- 'जो स्त्रियाँ इस तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगल कामना करेंगी उन्हें महादेव जी की कृपा से दीर्घायु पति का संसर्ग मिलेगा तथा उसकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होगी। फिर आज के दिन आपकी भक्तिभाव से पूजा-आराधना करने वाली स्त्रियों को अटल सौभाग्य प्राप्त होगा।'
यह कहकर नारद जी प्रणाम करके देवलोक चले गए और शिव जी-पार्वती जी कैलाश की ओर चल पड़े। चूंकि पार्वती जी ने इस व्रत को छिपाकर किया था, उसी परम्परा के अनुसार आज भी स्त्रियाँ इस व्रत को पुरुषों से छिपाकर करती हैं। यही कारण है कि अखण्ड सौभाग्य के लिए प्राचीन काल से ही स्त्रियाँ इस व्रत को करती आ रही हैं।
1 Comments
excellent post Vishw me kitne desh hai
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