वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की नींव की खुदाई करने वाले हैं तो पहले पढ़ें यह पूजन विधि और भूमि कैसे करे भूमि की परख ???






 "वास्तु के हिसाब से कैसी  भूमि पर घर बनाना चाहिए" ?इस प्रकार करे भूमि की परख ?

  "वास्तु"  क़ा मतलब होता है  "निवास करना "।   जिस भूमिपर लोग रहते है उसे कहते है  'वास्तु'  वास्तुशास्त्रमे घर बनाते समय कई नियमो का ध्यान रखा जता है क्यु कि इस्से कई चिजो का लाभ होता है और आरोग्यलाभ भी होता है। वस्तुशास्त्र के जो जानकार होते है वो मकान को देख कर बता सकते है कि क्या लाभ होगा और क्या नुकसान। तो चलिये कुछ  नियमो के बारे मे जान्ने कि कोशिश करते है। 

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर नींव रखने से पहले इन बातों का रखें ध्यान :-

      १   भुमि - परिक्षा  -ः इसमे यह बात का पता लगाया  जाता है कि जो जमीन हम खरिद रहे है वो कैसी है ,-  एक   हाथलम्‍बाऔरएक  हाथ चौडा ,एक हाथ गहरा गड्डा खोदे।  खोदने के बाद निकली हुई मिट्टी वापस उसमे भर दे अगर गड्डा भरने के बाद  मीट्टी बच जाए तो जमिन बहोत अ्च्‍छी है ,मिट्टी गड्डे के बराबर है तो मध्‍य्म और मिट्टी कम निकले तो अच्‍छी नहि है  जमिन ।   

                                                                                                                                                                                                                                            


       २ भूमि की   दुसरी विधि  - ः  एक बार फिर एसे हि गड़्डा खोदने के बाद उसमे पानी भर दे उत्तर दिशा कि ओर सै कदम चले, फिर लोटकर देखे   अगर गड्‍डा उतना हि भरा हुआ है तो जमिन सहि है अगर पनी आधा हुआ तो मद्ध्यम है और कम हुआ तो सही नहि है और जमीन पर रहने से स्वस्थ और सुख कि हनि होती है।    उसर, चुहोके बिलवली और टीलो वाली भुमिका त्याग कर देना चाहिये।

    जिस भुमिमे गद्दा खोदने पर कोयला, भस्म , हड्‍डी, भुसा आदि निकले  तो एसि भुमि पर  रहने से रोग होता है और आयु भी कम होती है |


     ३   भूमिकी सतह -ः  पुरव दिशा,  उत्तर दिशाऔर  ईशान दिशा मे निची भूमि सबसे अच्‍छि होती है।  आग्नेय, दक्शिन, नीरित्य ,पश्चिम,  वयव्य , और मद्द्य् मे नीची भूमि रोगो को उत्पन्न करने वली होती है। दक्शिन तथा आग्नेय के मद्ध्य नीची और उत्तर और वय्व्य्य के मद्ध्या ऊची भूमिका नाम 'रोगकर वास्तु ' है , जो रोग उत्पन्न करती है। 


वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की इस प्रकार करे  नींव की खुदाई :- 

भूमि पूजन के बाद नींव की खुदाई ईशान कोण से ही करनी चाहिए । ईशान के बाद आग्नेय कोण की खुदाई करें। आग्नेय के बाद वायव्य कोण, वायव्य कोण के बाद नैऋ त्य कोण की खुदाई करनी चाहिए । कोणों की खुदाई के बाद दिशा की खुदाई करें। पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में क्रम से खुदाई करें।


वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की इस प्रकार करे  नींव की भराई :-

 नींव की भराई करते वक़्त  नींव की खुदाई के विपरीत क्रम से करनी चाहिए । सबसे पहले नैऋत्य कोण की भराई करें। उसके बाद क्रम से वायव्य, आग्नेय, ईशान की भराई करें। अब दिशाओं में नींव की भराई करें। सबसे पहले दक्षिण दिशा में भराई करें। अब पश्चिम, उत्तर व पूर्व में क्रम से भराई करनी चाहिए ।





वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की नींव की पूजन के वक़्त कलश स्थापना की प्रथा :-

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की नींव पूजन के समय  एक छोटे कछुए के ऊपर चांदी या तांबे का कलश स्थापित करना चाहिए। कलश के अंदर चांदी के सर्प का जोड़ा, लोहे की चार कील, हल्दी की पांच गांठें, पान के 11 पत्ते, तुलसी की 35 पत्तियां, मिट्टी के 11 दीपक, छोटे आकार के पांच औजार, सिक्के, आटे की पंजीरी, फल, नारियल, गुड़, पांच चौकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राम-नाम पुस्तिका, पंच रत्न, पंच धातु आदि  रखना चाहिए। समस्त सामग्री को कलश में रखकर कलश का मुख लाल कपड़े से बांधकर नींव में स्थापित करना चाहिए।

   तो यह थी पूरी वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की भूमि वास्तु की जानकारी भूमि की परख कैसे करे नींव रखते वक़्त किस बात का ध्यान रखना चाहिए आदि पूरी जानकारी आपको इस लेख के माध्यम से आपको बताने की कोशिश की है अगर इससे सम्बन्धित कोई भी सवाल आपके मन में वो तो कमेंट करके जरूर पूछे और कैसा लगा आपको हमारा ये पोस्ट ये भी जरूर बताए ।।धन्यवाद ।।

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